Friday, April 05, 2019

कली का जीवन भुला नहीं ...!



था कली के रूप में मैं भी 
फूल बनने से पहले ही 
छू लिया था किसी ने 
तोड़ मगर नहीं सका मुझे 
सोच मगर थी कली जैसी 
सो हुआ नहीं मेरा फूल 
फूल बनकर जब आयी मैं 
कली का जीवन भुला नहीं 
लोग देखें फूल को मगर 
फूल को देखा किसी ने नहीं 
था कली के रूप में मैं भी 
अक्स न देख पाया कोई भी 
खुशबु थी बस मुस्कान जैसी 
खुशबु मगर ली किसी ने नहीं 
था कली के रूप में मैं भी 
फूल बनने से पहले ही 
छू लिया था किसी ने 
तोड़ मगर नहीं सका मुझे !

~ फ़िज़ा 

2 comments:

Harpreet Sandhu said...

Wah.......

Dawn said...

Shukriya!

करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !

  ज़िन्दगी की रीत कुछ यूँ है  असंतुलन ही इसकी नींव है ! लड़कियाँ आगे हों पढ़ाई में  भेदभाव उनके संग ज्यादा रहे ! बिना सहायता जान लड़ायें खेल में...