हर साल आता है साल नया
हर पुराने साल को करने विदा
हर गुज़रे साल से सीखते नया
मगर होता तो नहीं कुछ भी नया
ये साल बहुत कुछ हमें सीखा गया
क्या चाहिए और कितना बता गया
रोज़ मिले या न मिलें हम दोस्तों से
दिखा दिया कौन अपना और पराया
पैसों की ज़रुरत कम इंसान काम आया
घर की दाल-रोटी आम का अचार भला
स्वस्थ और स्वादिष्ट खाना सीखा गया
ज़रुरत तो वैसे कुछ भी नहीं जीने के लिए
वक्त ने इंसान को फिर किसान बना दिया
बगीचों में टमाटर धन्या अब उगने लगा
रोज़ परिवार संग बैठकर योजना बनाने लगा
छोटे से बड़ा घर का उत्तरदायी होने लगा
कंपनियों को समझ आने लगा निष्ठावान का
घर से हो या बगीचे से काम तो होने लगा
वक्त के साथ स्वस्थ्य पर निगरानी रखने लगा
इंसान आखिर इंसान पर भरोसा करने लगा
ज़िन्दगी देता इंसान तो वही लेता भी जान
मास्क न पहन गैर जिम्मेदार पार्टियां करने लगा
अपना न सही मगर औरों को खतरे में डालने लगा
बात भी सही है अब तो वज़न कम करो अपना
कुछ न कुछ करो पृथ्वी पर न बनों बोझ इतना
ज़िन्दगी में पाने के लिए खोना भी पड़ता है उतना
फिर वो ज़िन्दगी, रिश्ते, वक्त या हो खज़ाना
दो गज ज़मीन रोटी खाने को पीने को पानी
ज़िन्दगी सादगी में भी वो अदा है कातिलाना
कुछ न बदलना जो सीखा इस साल ऐ ज़माना
अति आत्मविश्वास में अपना सब कुछ न खोना
ज़िंदा हो इसीलिए नया साल मुबारक ही समझना
ज़िंदा रहना औरों को ज़िंदा रेहने का प्रोत्साहन देना
नया साल स्वस्थ सकुशल हो यही है कामना !
~ फ़िज़ा