ख़याल से नहीं न वो गए!


 

कुछ दिनों से आ रही थी ख़याल में 

बीती हुई कुछ पलछिन हादसे यादें 

हम सोचते रेह गए बस शायद थोड़ा 

हाँ ! थोड़ा रूककर बात ही कर लेते 

आखिरी बार ही मगर अलविदा सही 

जानते थे के बीमार ज़िन्दगी है कब?

आज अफ़सोस हुआ खबर ये जानकर 

ख़याल आया उन पलों का जब संग थे 

ख़ुशी जो हम दे सके एक-दूसरे को 

शायद अब वो नहीं हैं सोचने के वास्ते 

वो सभी जो सीखा-सिखाया साथ में 

वो सभी अब यादें रेह गयीं मेरे हिस्से में  

अफ़सोस तो हुआ ज़रूर जब सुना के 

वो अब नहीं रहे !!! आज बहुत याद आये !

ख़याल से नहीं न वो गए!


~ फ़िज़ा 

Comments

Onkar said…
बहुत सुंदर
Sudha Devrani said…
जाने वालों की यादें ही शेष बचती हैं
बहुत सुन्दर सृजन।
यादों के झिलमिल आंगन में विचरता मन। अच्छी लगी रचना और आपकी लेखनी।
याद जब विवशता बन जाए तो ऐसी रचनाएँ उपजती हैं। बहुत ही सुन्दर।
Dawn said…
Aap sabhi ka bahut bahut shukriya houslafzayee ka !
abhar

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