Wednesday, July 15, 2020

छूटता नहीं मगर रहता है मस्त में आज...


सूखे पत्ते और उस पर चलने की आवाज़ 
मन में जैसे छिपी एक आहट या आगाज़ 
मानों बरसों का इंतज़ार और वो अंदाज़ 
किसी की वो दबी यादें या अपना आज 
बातें पलछिन की जैसे कल नहीं आज 
रहते कल में खुश फिसलता हुआ आज 
जाने कब से अतीत के संग बीता आज 
छूटता नहीं मगर रहता है मस्त में आज 
क्यों पलछिन, यादें चले आते हैं आज
सूखे पत्ते जलकर दे जाते हरारत साज़ 

~ फ़िज़ा 

2 comments:

सुशील कुमार जोशी said...

सुन्दर सृजन

Dawn said...

आपका बहुत बहुत शुक्रिया !

खुदगर्ज़ मन

  आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है  अकेले-अकेले में रहने को कह रहा है  फूल-पत्तियों में मन रमाने को कह रहा है  आजकल मन बड़ा खुदगर्ज़ हो चला है ! ...