सूखे पत्ते और उस पर चलने की आवाज़
मन में जैसे छिपी एक आहट या आगाज़
मानों बरसों का इंतज़ार और वो अंदाज़
किसी की वो दबी यादें या अपना आज
बातें पलछिन की जैसे कल नहीं आज
रहते कल में खुश फिसलता हुआ आज
जाने कब से अतीत के संग बीता आज
छूटता नहीं मगर रहता है मस्त में आज
क्यों पलछिन, यादें चले आते हैं आज
सूखे पत्ते जलकर दे जाते हरारत साज़
~ फ़िज़ा
2 comments:
सुन्दर सृजन
आपका बहुत बहुत शुक्रिया !
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