क्यों जुड़ जाते हैं हम ...!

कोरोना के दिन हैं और उस पर आज शुक्रवार की शाम, इरफ़ान खान की फिल्म "क़रीब क़रीब सिंगल" देखी, जो फिल्म पहली बार में हंसी-मज़ाक ले आयी थी वही दोबारा देखने पर हंसी तो ले आयी मगर दो आंसूं भी.. ! इस ग़म को भगाने के लिए दिल बेचारा - सुशांत सींग राजपूत की फिल्म भी देख ली !
अलविदा बहुत ही मुश्किल होता है, मगर लिखना आसान !!!! ये कविता उन सभी के नाम जो अपनों को खोकर अलविदा नहीं कह पाते !!!



क्यों जुड़ जाते हैं हम 
जाने-अनजाने लोगों से 
न कोई रिश्ता न दोस्ती 
फिर भी घर कर लेते हैं 
दिल में जैसे कोई अपने 
ख़ुशी देते हैं जैसे सपने 
चंद फिल्में ही देखीं थीं 
बस दिल से अपना लिया 
कहानी को सच समझ कर 
उनके साथ हंस-रो लिया 
हकीकत की ज़िन्दगी सब 
अलग अपनी-अपनी होती हैं 
आज उनकी फिल्मों को देख 
उनके अपनों को सोच कर 
उनकी ज़िन्दगी के खालीपन 
और उनके बीते गुज़रे कल 
की यादों में रहकर जीने वाले 
सोचकर बहुत रो दिए!

~  फ़िज़ा 

Comments

लाजवाब।
कृपया चिट्ठा अनुसरणकर्ता बटन उपलब्ध करायें।
Dawn said…
ईमेल के ज़रिये अनुसरण कीजियेगा - आपका बहुत बहुत शुक्रिया समय निकालकर कविताओं को पढ़ने और यहाँ टिपण्णी देने के लिए
धन्यवाद
ईमेल ठीक है पर अच्छा होता है अगर अनुसरण किया जाये। सीधे चिट्ठे के पन्ने पर खबर मिल जाती है छपने की :) आभार
हृदयस्पर्शी सृजन।
Onkar said…
बहुत सुंदर रचना
Sehar said…
@सुशील कुमार जोशी जी, कोशिश कर रही हूँ जल्द ही अनुसरण का बटन लग जाये :) शुक्रिया बताने का
~ फ़िज़ा
Sehar said…
@yashoda Agrawal: बहुत-बहुत धन्यवाद हमारी कविता को यहाँ "पाँच लिंकों का आनन्द" में शामिल करने के लिए! अच्छी प्रस्तुति है और प्रोत्साहन बढ़ाने के लिए धन्यवाद !
Sehar said…
@अनीता सैनी : बहुत शुक्रिया यहाँ आकर कविता पढ़ने का और सराहकर प्रोत्साहन करने का
आभारी
Sehar said…
@Onkar Ji: बहुत शुक्रिया यहाँ आकर कविता पढ़ने का और सराहकर प्रोत्साहन करने का
आभारी
Dawn said…
@गगन शर्मा, कुछ अलग सा: शुक्रिया!

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