करें मुस्तकबिल बगावत का ...!




चलती तो हूँ मैं सीना तानकर 
मगर दिल में अब भी है वो डर 
कहीं खानी न पड़ जाए ठोकर 
दर ब दर !
क्यों न इस पल के हम हो जाएं 
शुक्रगुज़ार, जी लें उस पल को 
क्यों ख्वामखा करती है परेशान 
किसी अनहोनी का !
न तो जी भर के खुश भी हो सकें 
न ही ग़मगीन हों उस बात की जो 
अभी हुआ नहीं हैं बस फिर भी 
लगा रहता है डर !
आँखों के सामने अनीति नज़र आती है 
सर पे है हाथ किसी का जो करे मनमानी 
सोचते रेह जाते हैं क्या सिर्फ देखें ये सब 
या करें मुस्तकबिल बगावत का !

~ फ़िज़ा 

Comments

Dawn said…
आपका बहुत बहुत शुक्रिया !
वाह !बहुत सुंदर
Dawn said…
@अनीता सैनी : आपका बहुत बहुत शुक्रिया !

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