चलती तो हूँ मैं सीना तानकर
मगर दिल में अब भी है वो डर
कहीं खानी न पड़ जाए ठोकर
दर ब दर !
क्यों न इस पल के हम हो जाएं
शुक्रगुज़ार, जी लें उस पल को
क्यों ख्वामखा करती है परेशान
किसी अनहोनी का !
न तो जी भर के खुश भी हो सकें
न ही ग़मगीन हों उस बात की जो
अभी हुआ नहीं हैं बस फिर भी
लगा रहता है डर !
आँखों के सामने अनीति नज़र आती है
सर पे है हाथ किसी का जो करे मनमानी
सोचते रेह जाते हैं क्या सिर्फ देखें ये सब
या करें मुस्तकबिल बगावत का !
~ फ़िज़ा
4 comments:
वाह
आपका बहुत बहुत शुक्रिया !
वाह !बहुत सुंदर
@अनीता सैनी : आपका बहुत बहुत शुक्रिया !
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