मेरा बचपन याद आता है इस जगह
वही पहाड़ वही वादियां वही राह
वही पंछी झरना और वही राग
खुश हो जाता है मन इन्हीं सबसे
जब बचपन जवानी मिले एक दूसरे से !
कितने अच्छे थे वो दिन सब सादगी में
जलते सब थे मगर रहते थे अपनी धुन में
छोटी-मोटी चाह हर किसी के दिल में
रहते थे अपने दायरे और फासलों में
थी ही कितनी बड़ी वो दुनिया छोटी सी !
कम में भी एक सुकून सा था जीने का
फ़िक्र थी भी तो इतना नहीं जीने का
एक-दूसरे की क़द्र थी दिल से मुहब्बत का
आजकल आडंबरी हैं अपने और अपनों का
अपनी हस्ती का बवाल मचा रखा हर तरफ का !
~ फ़िज़ा
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