Tuesday, May 05, 2020

खैर, वो दिन आया...!



आपको कोई रुलाये ये हक़ तो किसी को नहीं 
सिवाए अपनों के ऐसा करता भी तो कोई नहीं !

यहाँ मगर अपना बनाया किसने उन्होंने तो नहीं 
ये तो मेरी दिल्लगी थी जो मैं अपना समझ बैठी !

शाम को लौटी घर तो कहा पादरी और बीवी से
कल ही निकल जायेंगे दूसरे किरायेदार के पास !

ये सुनकर तो बिलकुल खुश नहीं हुए वे दोनों 
पूछ बैठे कहाँ जा रहे हो और इतनी जल्दी कैसे?

कहा जो तुमने हम से, नहीं परेशान करना तुम्हें
मराठी महिला से कहा संभाल लिया उन्होंने हमें !

पादरी की बीवी नाखुश थी इस बात से मगर 
कहा किराया वहां भी देना है तो यहीं देदो हमें !

इस बात पर लगा जैसे हम फिर बंध जायेंगे यहाँ 
झट से झूठ कहा दिया किराया कुछ देना नहीं वहां !

जैसे ही ये सुना, पादरी की बीवी कुछ बोल नहीं पाई 
हमें इस तरह वहां से निकलने की इजाज़त मिल गयी !

पादरी सोये नहीं शायद सुबह का रवैया अलग था 
हमने सामान बांध लिया था तैयारी पूरी थी हमारी !

सुबह नाश्ते के वक़्त पादरी बोले जाना ज़रूरी नहीं है 
यहाँ रेहा सकती हो मैंने जो कहा तुमने दिल पे लिया !

आत्मसम्मान किसे नहीं है और हम में तो कूट के है 
कहा नहीं बदनाम कराना चाहते अपनी वजह से !

पादरी की बीवी पूछने लगी क्या बदनाम क्या बात है?
पादरी की ये चाल का उन्हें बिलकुल भी इल्म न था !

खैर, 'फ़िज़ा' का वो दिन आया कुछ पल के लिए सही 
कहा, कहने से क्या फायदा जब चिड़िया चुग गयी खेत !

एक ज़िद की पादरी ने उस दिन जब अलविदा कहा 
कम से कम पहुँचाने का हक़ अदा करने से न रोको !

इस तरह हम छोड़ आये होमवुड-पादरी की गालियां 
पादरी हमें गाडी में छोड़ आये किंग स्ट्रीट के अंगना !

~ फ़िज़ा 

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अच्छी यादें दे जाओ ख़ुशी से !

  गुज़रते वक़्त से सीखा है  गुज़रे हुए पल, और लोग  वो फिर नहीं आते ! मतलबी या खुदगर्ज़ी हो  एक बार समझ आ जाए  उनका साथ फिर नहीं देते ! पास न हों...