उसने कई बार अपनाया और ठुकराया भी
दौर में कई बार कोई जिया और मरा भी !
ज़िन्दगी के मायने कोई समझा या नहीं भी
तोहमतें रोज़ नयी और होते रहे शिकार भी !
ऊंगलियां उठाने के मौके छोड़ता नहीं भी
समाज की बातें करते समतावादी की भी !
हादसे हो जाते हैं, बर्बाद नज़र आता भी
जड़ों की तलाश न करते ठहराते दोषी भी !
उसने कई बार अपनाया और ठुकराया भी
इस वजह से खुद को पायी और खोयी भी !
बहुत दूर तक सफर था साथ न होकर भी
सोचो कौन देता है आखिर तक साथ भी ?
जब आये थे रो कर इस जहाँ में हम सभी
क्यों न जाएं हस्ते-हस्ते उस पार हम भी?
~ फ़िज़ा
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