आया तो हर कोई यहाँ बेमर्जी
जैसे सिर्फ काटने कोई सजा
क्यूंकि जाने कितने बेगैरत यहाँ
मिल जाते हैं देने सिर्फ सजा !
औरों को सजा देना, हैं इनकी जीत
औरों की गनीमत है जो सहते हैं
वर्ना कौन यहाँ निभाने वास्ते है
जब आये बेमर्जी तो क्यों सहें
बेवजह रिश्तों के नाम की बलि
चढ़ते -चढ़ाते निकल ही जाना है
काहे नहीं निकल पड़ते आवारा
जीने की राह है आज़ादी जब
तो ज़िंदादिली से जियें और
जो रेहा जाएं रोते -संभलते
हौसला देके निकल जाएं !!
~ फ़िज़ा
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