जहां में थी जब मैं अकेली
तब आयी एक नन्ही कली
सोचा न था, मैं हैरान हूँ पगली !
बस यकीन था खुद पर
चलना,सफर गर ज़िन्दगी
सोचा न था, मैं हैरान हूँ पगली !
तो साथ में हो मेरी सखी
छोटी थी मेरी राजदार मगर
सोचा न था, मैं हैरान हूँ पगली !
हर सुख-दुःख में निभानेवाली
मेरी नन्ही कली, चंचल मतवाली
सोचा न था, मैं हैरान हूँ पगली !
कभी हम ज़िंदादिली सीखाएं
तो कभी वो हमें सीखाएं
सोचा न था, मैं हैरान हूँ पगली !
है तो मेरी ही विस्तार
मगर मैं मुड़कर देखूं पीछे
सोचा न था, मैं हैरान हूँ पगली !
अपनी उम्र न कभी गिनी मैंने
कब हो गयी ये फूल मेरी कली
सोचा न था, मैं हैरान हूँ पगली !
फिर सोचूं क्यों मैं गिनूँ साल
अब तो है मेरी बराबर की सखी
सोचा न था, मैं हैरान हूँ पगली !
~ फ़िज़ा
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