उसके अपने आज़ाद ख्याल थे
फिर भी वो सिमटी हुई दुनिया के
उसूलों पे रहने लगी थी मगर फिर भी
जीने की चाह उसके अंदर दबी थी !
क्या उड़ना इतना मुश्किल है?
या ऐसा सोचना भी पाप है?
और ऐसा सोचना कौन तै करता है?
क्यों कोई आज़ाद नहीं इस संसार में?
जब वो आया नहीं किसी दायरे में?
मैं हूँ एक ज़िन्दगी, जीना चाहती हूँ
अपनी मर्ज़ी की ज़िन्दगी !
क्यों कोई रोके या टोके मुझे ?
कोशिशें लाख करूँ मैं फिर भी
गर कोई बर्बादी की तरफ ही बढे
तब छोड़ भी देना चाहिए ये ज़िद
रहने दो बिन क्यारियों के सबको
के ज़िन्दगी का नाम है आज़ादी !
ज़िन्दगी है जिंदादिलों की!
जियो गर कोई साथ दे या न दे
ज़िन्दगी, तू जीने के लिए ही है आयी
तो जियो ख़ुशी से !
तबाह कर हर उस वहम को उस
रिवाजों को और हर दया को
जो रोके हैं तुझे किसी बांध की तरह
क्योंकि तेरा काम है बेहना और
जीवन का नाम है सिर्फ चलना !
चलते जाना! न रुकने का नाम है
ज़िन्दगी!!!!
~ फ़िज़ा
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