बहारों ने खिलना सीखा दिया मुझे
किसी खूंटी से बंधना न गवारा मुझे !
हौसला है अब भी न भय है मुझे
कोई साथ हो न हो ग़म न है मुझे !
दिन याद आते हैं पुराने मुझे
अकेले थे और लोग डराते मुझे !
बेफिक्र के दिन थे परेशानी थी मुझे
अपनों की याद सताती रही मुझे !
हर दिन नया हौसला है मुझे
जीने की देती यही सदायें मुझे !
खिलती कली ने कहा है मुझे
खिलना है काम बस आता मुझे !
पत्तों ने हँसकर कहा फिर मुझे
गिरते हम भी हैं पतझड़ में समझे !
खिलते फूलों ने कहा ये मुझे
खिलती रहो हमेशा ख़ुशी से मुझे !
~ फ़िज़ा
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