Thursday, May 04, 2017

कहाँ जाते हो रुक जाओ !


कहाँ जाते हो रुक जाओ 
तूफानी रात थम जाने दो
मौसम का क्या है बस बहाना 
आने-जाने में यूँ वक़्त न गंवाओ 
कहाँ जाते हो रुक जाओ !

बहलता है मन तो बहलने दो 
रुका पानी उसे थमने न दो 
ये जीवन है चलने वास्ते 
स्वस्थ हवा में लहराने दो 
 कहाँ जाते हो रुक जाओ !

खुलके मिलो बाहर निकलो 
ये समां यूँ ही न जाने दो 
देखो चाँद वोही है आज भी 
प्यार से उसकी तरफ देखो 
कहाँ जाते हो रुक जाओ !

बुलाता है मुझे चाँद देखो 
अपनी शुष्क बाँहों में खो 
बिखेरता है रोमांच देखो 
फिर जीने की राह देखो 
कहाँ जाते हो रुक जाओ !

~ फ़िज़ा  

No comments:

करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !

  ज़िन्दगी की रीत कुछ यूँ है  असंतुलन ही इसकी नींव है ! लड़कियाँ आगे हों पढ़ाई में  भेदभाव उनके संग ज्यादा रहे ! बिना सहायता जान लड़ायें खेल में...