जी रही हूँ मैं खुली हवा में
ले रही हूँ सांसें खिली वादियों में
महकते हैं फूल है कुछ बदला
बहारों का मौसम फिर आगया है
खुली हवा में खिली हूँ इस तरह
मोहब्बत की खुशबु महकती है ज़रा
जी रही हूँ मैं खुली हवा में
क्यूंकि, ले रही हूँ सांसें खिली वादियों में
फ़िज़ा, महकती है कुछ अब चहकती है
फिर कोई अरमान मचलते फूलों में
चाँद के आगोश में यूँ बहकते अरमान !
~ फ़िज़ा
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