वो पल जब किसी की भी
चाह नहीं
किसी का भी साथ
चाहिए नहीं
वक्त के गुज़रते लम्हों से
कोई वास्ता नहीं
किसीको किसी की भी
फ़िक्र नहीं
चलता है मुसाफिर मंज़िल
पता नहीं
भटकता फिरता है हर जगह
ठिकाना नहीं
अब बहुत देर तक चलते रहे
ख़त्म होता नहीं
थक गया है वृक्ष अब तो तनों में
पत्ते भी नहीं
ले देकर सिर्फ कुछ हड्डियां हैं
बाकि कुछ भी नहीं
मेरे बाद अब तो कोई मुझे
करेगा याद भी नहीं !
~ फ़िज़ा
4 comments:
गुजरे जमाने का वृक्ष हो व्यक्ति सबकी व्यथा यही है, सेहर जी ! कौन किसी को याद करता है ?
जर्जर वृक्ष की व्यथा ।
सुंदर रचना
वृक्ष के माध्यम से बहुत कुछ कहती गहन रचना।
सुंदर सृजन।
Aap sabhi ka behad shukriya
Abhar!
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