Wednesday, March 10, 2021

वृक्ष की कथा

 




वो पल जब किसी की भी 

चाह नहीं 

किसी का भी साथ 

चाहिए नहीं 

वक्त के गुज़रते लम्हों से 

कोई वास्ता नहीं 

किसीको किसी की भी 

फ़िक्र नहीं 

चलता है मुसाफिर मंज़िल 

पता नहीं 

भटकता फिरता है हर जगह 

ठिकाना नहीं 

अब बहुत देर तक चलते रहे 

ख़त्म होता नहीं 

थक गया है वृक्ष अब तो तनों में 

पत्ते भी नहीं 

ले देकर सिर्फ कुछ हड्डियां हैं 

बाकि कुछ भी नहीं 

मेरे बाद अब तो कोई मुझे 

करेगा याद भी नहीं !

~ फ़िज़ा 

4 comments:

रेणु said...

गुजरे जमाने का वृक्ष हो व्यक्ति सबकी व्यथा यही है, सेहर जी ! कौन किसी को याद करता है ?

संगीता स्वरुप ( गीत ) said...

जर्जर वृक्ष की व्यथा ।
सुंदर रचना

मन की वीणा said...

वृक्ष के माध्यम से बहुत कुछ कहती गहन रचना।
सुंदर सृजन।

Dawn said...

Aap sabhi ka behad shukriya

Abhar!

करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !

  ज़िन्दगी की रीत कुछ यूँ है  असंतुलन ही इसकी नींव है ! लड़कियाँ आगे हों पढ़ाई में  भेदभाव उनके संग ज्यादा रहे ! बिना सहायता जान लड़ायें खेल में...