Friday, October 30, 2020

रिश्ता ही बन चूका है चाँद से ज़िन्दगी का

 



मोहब्बत तो चाँद से बहुत पुराना है 

बचपन से लेकर आज तक याराना है 

तब देखने को तरसते मचलता था मन 

नयी उमंग उठने लगीं थीं मन में उससे 

पूरे चाँद-रात को ख़ुशी से मचलते थे  

अम्मी से कहते तब पूर्णिमा की रात है 

सेवइयां बनाने की यूँही ज़िद करते थे 

मीठा खाने की या चाँद से मोहब्बत 

जो भी हो दोनों के होने का आनंद लेते 

मोहब्बत परिपक्वता की सीमा पर है 

आजकल चांदनी की सेज़ में सोते हैं 

वो भी रात-भर बैठकर सुला देता है 

डर नहीं उसके जाने का अपना जो है 

ऐसा लगता है वो हरसू मुझे निहारता है 

मिलन की सेवइयां अब खुद बनाती हूँ 

मोहब्बत का स्वाद मन ही मन सहलाती हूँ  

उसकी आगोश में यूँही फ़िज़ा महकाती हूँ

रिश्ता ही बन चूका है चाँद से ज़िन्दगी का  

अब तो हरसू कविता आंखें चार रेहती हूँ !


~ फ़िज़ा 

6 comments:

Digvijay Agrawal said...

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 01 नवंबर 2020 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

शिवम कुमार पाण्डेय said...

बहुत सुंदर।
बाकी हमने खीर का आनंद लिया..।
😅

Meena sharma said...

वाह ! बढ़िया।

Dawn said...

@Digvijay Agrawal : Aapka bahut bahut shukriya, is kavita ko apnee blog mein shamil karne ke liye. Is izjjatafzayi ka behad shukriya !


@शिवम् कुमार पाण्डेय : :D Bahut shukriya aapka cavité pasand karne ka aur bina khaye kheer ka anand uthaane ka :D

@Ravindra Singh Yadav: Namaste, meri kavita ko apne blog mein sthan dene ke liye aapka bahut bahut dhanyawaad.

अनीता सैनी said...

बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन।

Dawn said...

@अनीता सैनी aapka bahut bahut dhanyavaad - deepawali ki hardhik shubhkamanayein

करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !

  ज़िन्दगी की रीत कुछ यूँ है  असंतुलन ही इसकी नींव है ! लड़कियाँ आगे हों पढ़ाई में  भेदभाव उनके संग ज्यादा रहे ! बिना सहायता जान लड़ायें खेल में...