जब भी कभी मोहब्बत की आग जली
हर किसी ने उसे बुझाने की सोची
चाहे वो एक धर्म जाती के हों
या अलग-अलग धर्म प्रांतों के
समाज हमेशा पेहरे देने पर चली
रोकना, दखल देने में रही उलझी
कभी किसी ने भी अपने मन कि की
तब हर बार समाज की उठी उंगली
जाने क्या गलत है मोहब्बत में
हर कोई मारा गया मोहब्बत में
हीर-राँझा या रोमियो जूलिएट
बलिदान की सूली पर आखिर गुज़री
मरना तो हर किसी को है फिर
क्या ग़म है मोहब्बत में जीना?
~ फ़िज़ा
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