चंद राहें संग चले फिर बिछड़ गए
दरअसल राहें बदल गयीं इस करके भी
चलने वाले संग होकर भी अलग हो गए !
दोस्ती बराबर की थी सही भी शायद
कुछ था जो दूरियों को बीच ले आई
न जाने मचलता गया फिर दिल शायद !
ग़लतियां समझो या हकीकत का आना
निभाना है संग कसम निभाने की खायी
खाने की होती है कसम जो पड़े निभाना !
सोचो तो बहुत कुछ और कुछ भी नहीं
और देखो तो बहुत कुछ है जहाँ में
कलेजों को रखना है साथ निभाना नहीं !
ये दुनिया है सरायघर आना जाना है
कहीं रूह से जुड़े तो कहीं खून से
क्यों लगाव रखना जब आकर जाना है !
~ फ़िज़ा
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