Thursday, December 10, 2015

दरअसल राहें बदल गयीं इस करके भी....



चंद राहें संग चले फिर बिछड़ गए 
दरअसल राहें  बदल गयीं इस करके भी 
चलने वाले संग होकर भी अलग हो गए !

दोस्ती बराबर की थी सही भी शायद 
कुछ था जो दूरियों को बीच ले आई 
न जाने मचलता गया फिर दिल शायद !

ग़लतियां समझो या हकीकत का आना 
निभाना है संग कसम निभाने की खायी 
खाने की होती है कसम जो पड़े निभाना !

सोचो तो बहुत कुछ और कुछ भी नहीं 
और देखो तो बहुत कुछ है जहाँ में 
कलेजों को रखना है साथ निभाना नहीं ! 

ये दुनिया है सरायघर आना जाना है 
कहीं रूह से जुड़े तो कहीं खून से 
क्यों लगाव रखना जब आकर जाना है !

~ फ़िज़ा 

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  गुज़रते वक़्त से सीखा है  गुज़रे हुए पल, और लोग  वो फिर नहीं आते ! मतलबी या खुदगर्ज़ी हो  एक बार समझ आ जाए  उनका साथ फिर नहीं देते ! पास न हों...