Friday, November 27, 2015

इस ज़िन्दगी का क्या?


जीने का जब मकसद ख़त्म हो जाये 
तब उसे जीना नहीं लाश कहते हैं 
लाश को कोई कब तक ढोता है?
बदबू उसमें से भी आने लगती है... 
क्यों न सब मिलकर खत्म कर दें 
इस ज़िन्दगी को ?
मरना आसान होता मदत नहीं मांगते 
कोशिश भी करें? तो कहीं बच गए तो ?
खैर, किसी को खुद का क़त्ल करवाने बुलालें 
काम का काम और खुनी रहे बेनाम 
मुक्ति दोनों को मिल जाये फिर 
इस ज़िन्दगी का क्या?
मौत के बाद की दुनिया घूम आएंगे 
कुछ वहां की हकीकत को भी जानेंगे 
समझेंगे मौत का जीवन जीवन है या 
ज़िन्दगी ही केवल जीवन देती है?
जो भी हो एहसास तो हो पाये किसी तरह 
ज़िन्दगी तो अब रही नहीं मौत ही सही 
इस ज़िन्दगी में रखा क्या है?

~ फ़िज़ा 

No comments:

अच्छी यादें दे जाओ ख़ुशी से !

  गुज़रते वक़्त से सीखा है  गुज़रे हुए पल, और लोग  वो फिर नहीं आते ! मतलबी या खुदगर्ज़ी हो  एक बार समझ आ जाए  उनका साथ फिर नहीं देते ! पास न हों...