मोहब्बत भी एक लत है
जो लग जाती है तो फिर
मुश्किल से हल होती है
एक घबराहट तब भी होती है
जब ये नयी -नयी होती है
और तब भी जब बिछड़ जाती है
एक डर जाने क्या अंजाम हो आगे
या फिर एक अनिश्चितता
एक उड़ान सा भरा लम्हा जैसे
रोलर कोस्टर सा जहाँ डर भी है
और एक अनजानेपन का मज़ा भी
बहलते-डोलते चले हैं रहगुज़र
जब-जब होना है तब होगा
अंजाम होने पर देखा जायेगा
मोहब्बत भी क्या चीज़ है दोस्तों!
~ फ़िज़ा
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