दिल कराहता है
पूछता है मैं क्या हूँ?
क्यों हूँ?
किस वजह से अब भी ज़िंदा हूँ?
वो सब जो मायने रखता है
वो सब जो महसूस के बाहर है
वो सब आज यूँ आस-पास है
और मैं ये सब देखकर भी
ज़िंदा हूँ
क्यों हूँ?
लोग मरते हैं आये दिन
बीमार कम और वहशत ज्यादा
प्यार कम और नफरत ज्यादा
अमृत कम और लहू ज्यादा
ये कैसी जगह है?
ये क्या युग है जहाँ
लहू और लाशों के
बाग़ बिछाये हैं
लोग कुछ न कर सिर्फ
दुआ मांग रहे हैं
इंसान होना भी क्या लाचारी है!
हैवान पल रहे हैं, राज कर रहे हैं
मैं क्यों अब भी ज़िंदा हूँ?
क्यों आखिर मैं ज़िंदा हूँ?
~ फ़िज़ा
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