माँ
इस शब्द में ही
वो ताकत है जो
जीवन तो देती है
मगर उसे सींचकर
मजबूत बनाती है
हर सुख-दुःख में
हौसला तो देती है
लड़ने की क्षमता
निडरता और संयम
का पाठ सिखाती है
पास नहीं तो दूर से ही
स्नेह के भण्डार से
वो मुस्कान लाती है
एक पल में कान खेंचकर
दो दूजे पल मुंह में निवाला
देने वाली माँ ही तो है
जो सिर्फ अपने बच्चों के लिए
जगती, फिक्रमंद होकर
आज भी पूछती है
खाना खा लिया न?
स्नेह, धैर्य, का बिम्ब
है वो माँ !
~ फ़िज़ा
8 comments:
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (१० -०५ -२०२१) को 'फ़िक्र से भरी बेटियां माँ जैसी हो जाती हैं'(चर्चा अंक-४०६१) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
बहुत खूब।
""एक पल में कान खेंचकर
दो दूजे पल मुंह में निवाला
देने वाली माँ ही तो है ""
....
बिल्कुल सही लिखा आपने। माँ पर लिखी यह रचना बहुत बढ़िया है।
बहुत सुंदर और सटीक चित्रण ।
मातृ दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं।
अति मनभावन सृजन ।
अनीता सैनी जी, आपका बहुत-बहुत शुक्रिया जो अपने मेरी रचना को अपने संकलन में शामिल किया, धन्यवाद
आभार!
नितीश जी आपका बहुत शुक्रिया इस रचना को पसंद करने के लिए
धन्यवाद !
प्रकाश जी आपका बहुत धन्यवाद इस रचना को सरहंने के लिए और प्रोत्साहन बढ़ाने के लिए, धन्यवाद, आभार !
मन की वीणा जी, आपका बहुत-बहुत धन्यवाद, आपको भी मातृत्व दिवस की शुभकामनाएं
आभार !
अमृता तन्मय जी आपका बहुत धन्यवाद रचना को सराहने और प्रोत्साहन बढ़ने के लिए, आभार !
बहुत सुंदर प्रस्तुति
Anuradha ji aapka behad shukriya, abhar!
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