आ सको तो आजाओ तुम...!



आ सको तो आजाओ तुम 
लम्बा सफर रहा जुदाई का 
गए थे हंसी-ख़ुशी में यहाँ से
भेजा था हमने भी उत्साह से 
दिनों-हफ़्तों की बात और है  
महीना होने को यहाँ चला है 
आ सको तो आजाओ तुम 
लम्बा सफर रहा जुदाई का !
घर की बात और दफ्तर की 
काम सभी नियमित होते हैं 
सब का इंतज़ाम ठीक हुआ है 
शाम आती है सूनेपन को लेकर 
तुम, आ सको तो आजाओ  
लम्बा सफर रहा जुदाई का !
शुरुवात बच्चों की मर्ज़ी से ही 
चलता रहा दिनचर्या मस्ती से  
अब उसमें भी नीरसता आगयी 
सच कहूं तो दिल नहीं लगता 
हो सके गर तुमसे तो आजाओ  
जुदाई का सफर अब नहीं सहना !
आ सको तो आजाओ तुम 
लम्बा सफर रहा जुदाई का !!

~ फ़िज़ा 

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