ज़िन्दगी को गले लगा लें ...!


एक रिश्ता सा बन गया है 
अब तो जैसे 
खांसी न आये तब भी 
लगता है आ रही है !
सांस चल रही है ज़िन्दगी की 
मगर ऐसा लगता है अब 
खांसकर तबाहकर  
अब गयी तब गयी !
मौत भी एक फरिश्ता है 
जो के रिश्तों की तरह 
बेकार होगयी जाने क्यों 
झांसा देकर चली गई !
ज़िन्दगी को गले लगा लें 
शायद इसे बहका सकें 
हंसती है दूर से मगर 
पास से रुलाती है !

~ फ़िज़ा

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