उसके मिलने की ख़ुशी का आभास ...!

खिलने के पेहले और 
खिलने का वो प्रकरण 
जाने कितनी प्रक्रिया से 
गुज़रते एहसास नितदिन !
वहीं खिल जाने के बाद 
खिलकर बिखरने का पल 
ऊंचाइयों से गिरने का डर  
ऊंचाई से गिरते वक्त का भय !!
जाने कितने ही एहसास दबाये 
मानसिक वेदना का घूंट पीकर 
अनजान नज़ारों का भय संजोकर
जीवन को बना लिया एक लिबास !!!
फिर वो वक़्त भी आया मेरे पास 
घुटने टीकाकार उठने का प्रयास 
किसी भय का नहीं अब निवास 
उतार फेंका डर का वो लिबास !!!!
आज़ादी मिली नहीं मगर फिर भी 
उसके मिलने की ख़ुशी का आभास 
समझा सकता है दर्द की कश्ती हज़ार 
आखिर उड़ सकती हूँ मैं भी पंख पसार !!

~ फ़िज़ा 

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