एक आवाज़ और गोली ने भून दिया
सबको छलनी-छलनी कर दिया
हर तरफ लहू का गलीचा बिछा दिया
चीखते-चिल्लाते, बिलखते बचते-बचाते
सुर्ख़ियों में लरजते कुछ ज़िन्दगियाँ
मरने वाला भी न रहा और मारने वाला भी
जाने कौन देस से था वो हाड़ -मांस का
किस बात की तमन्ना पूरी कर गया यूँ
के बचे लोगों में सवाल बनके रहा गया
क्यों? किस लिए? क्या पाया? क्या मिला?
सृष्टि का खेल या दिमागी असमंजस
हैवानियत का एक और प्रदर्शन दूरदर्शन पर था!
~ फ़िज़ा
No comments:
Post a Comment