मोहब्बत ही न होता तो मैं कहाँ होता?


मोहब्बत में मैं नहीं होता तो खुदा होता 
मोहब्बत ही न होता तो मैं कहाँ होता?

फ़िज़ा में दिन नहीं होता तो क्या होता? 
दिन नहीं जब होता तब रात ही होता 

दरख़्त में पत्ते,शगोफा, खार तो होता 
गर शगोफा होता तो गुल ज़रूर होता 

आसमां पर अफ़ताब दिन में ज़रूर होता 
शब् पे कोई हो न हो माहताब ज़रूर होता 

ज़िन्दगी मसरत नहीं होता गर ग़म न होता 
ज़िन्दगी क्या होता गर वफ़ात नहीं होता ?

~ फ़िज़ा   

Comments

Popular posts from this blog

हौसला रखना बुलंद

उसके जाने का ग़म गहरा है

दिवाली की शुभकामनाएं आपको भी !