वो शाम याद आती है मुझे ...!


वो शाम याद आती है मुझे 
जब रंगोली से भरा बरामदा 
और दीयों की कतार में 
रौशनी का हवा से बतियाना 
लोगों की चहल-पहल तो 
कहीं बच्चों का उल्लास 
हर तरफ रौशनी और 
हर किसी के मुख में मिठाई 
दोनों हाथों में भरा पटाखा 
कभी में जलाऊं तो कभी वो 
खेलते-खाते गुज़र जाते 
छे के छे दिन 
आता जब सातवे की सुबह 
हर तरफ कागज़ों की 
बिछी कालीन 
जमा करते सभी एक ओर 
लगते उसमें भी आग हलकी सी 
जाने कुछ बची हुई लड़ी ही सही 
आग सेख़ते -सेख़ते बज उठतीं 
यूँही दिवाली को करते अलविदा 
मिठाइयों की मिठास से 
करते परहेज़ खाने से 
फिर देखो थालियों से भरा 
मिठाई का डब्बा घर में आ चला 
देखते -देखते एक और साल 
निकल गया ! 

~ फ़िज़ा 

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