न थी कभी ऐसी ज़िन्दगी
न थी किसी से कोई बंदगी
मुश्किल में साथ थी हौसला
न थी कभी ऐसी ज़िन्दगी
न थी किसी से कोई बंदगी !
हर हाल में सीखा मुस्कुराना
दिया हौसले का नज़राना
न हताश हुई ये ज़िंदगानी
न थी कभी ऐसी ज़िन्दगी
न थी किसी से कोई बंदगी !
वो पल भी आया थक गए
वक़्त आया अब निकल गए
न जीने की लालसा रही कोई
न थी कभी ऐसी ज़िन्दगी
न थी किसी से कोई बंदगी !
सूखे पत्तों का ढेर है अब
चाहो तो तिल्ली झोंकलो अब
जलने का न डर है कोई
न थी कभी ऐसी ज़िन्दगी
न थी किसी से कोई बंदगी !
~ फ़िज़ा
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