Thursday, April 13, 2006

एक तुम से न हो पाये दूर शाम-ओ-सेहर

इंतजा़र, एक ऐसा अ‍क्षर है जो हर किसी को बेहाल करता है। कई बार असमंजस में डाल देता है तो ....कभी क्रोधित भी...किंतु ...परंतु इंतजा़र हर कोई करता है; चाहे वो बसंत का हो, या नौकरी का या फिर बरखारानी ...इंतजा़र तो भाई! शामो-सेहर होता है। :)

क्‍या पता था इंतजा़र में हो रहे थे बेखबर
जिसका करते रहे इंतजा़र शाम-ओ-सेहर

चाहत कुछ इस कद्र बढी़ है उनसे के

हर फासले हो रहे ना-कामीयाब शाम-ओ-सेहर

मेरे दिल ने फैसला किया आज उस दिवाने से
कोशिश करेंगे याद करें शाम-ओ-सेहर

किस तरह वादा करें हम याद न करने का

जब भुला ही न पाये हम शाम-ओ-सेहर

गली, शहर सब घुमें 'फिजा़' दूर-दूर
एक तुम से न हो पाये दूर शाम-ओ-सेहर

~ फिजा़

6 comments:

Udan Tashtari said...

जब भी आँख बंद की और तस्वीर है तेरी,
कभी चैन से सो ना पाये शाम-ओ-सेहर ...

बहुत खुब, बधाई, फ़िज़ा जी.
समीर लाल

Manish Kumar said...

बहस के वो दिन भुला ना पाये हम शाम ‍‍‍‍‍‌‍ओ सहर !
One of my fav poem of urs! Yahan share karne ka shukriya.

Dawn said...

उडन तश्तरी: समीर जी, आपका बहुत-बहुत शुक्रिया जो इस नाचीज़ की सराहना की।
खुश रहें सदा...

मनिष: बहुत अच्‍छा लगा जानकर के हमारी भी कोई नज्‍़म/कविता आपकी पसंदीदा में शामिल है।
शुक्रिया...
बहस के दिन भुलाऐ न भुलें
ये न आयें फिर जैसे
सावन के झूले

Manish Kumar said...

Achcha laga wo theek hai par mera naam to theek likhiye grrrr :)

मneeष !

Dawn said...

Baat tumhein samajh hee nahi aaye to mein kya karooon ...lol
Yaad hai Dil Chahta hai mein....aaasheeeesh....:P
I did it on purpose...even though dekhne mein bhi thik nahi lagta phir bhi ....boooh
Maneeeeesh :D

Cheers

Dawn said...

actually subha jaldi mein jaane kya type kiya ...oops! its Akaaaaash :D

करो न भेदभाव हो स्त्री या पुरुष !

  ज़िन्दगी की रीत कुछ यूँ है  असंतुलन ही इसकी नींव है ! लड़कियाँ आगे हों पढ़ाई में  भेदभाव उनके संग ज्यादा रहे ! बिना सहायता जान लड़ायें खेल में...