इंतजा़र, एक ऐसा अक्षर है जो हर किसी को बेहाल करता है। कई बार असमंजस में डाल देता है तो ....कभी क्रोधित भी...किंतु ...परंतु इंतजा़र हर कोई करता है; चाहे वो बसंत का हो, या नौकरी का या फिर बरखारानी ...इंतजा़र तो भाई! शामो-सेहर होता है। :)
क्या पता था इंतजा़र में हो रहे थे बेखबर
जिसका करते रहे इंतजा़र शाम-ओ-सेहर
चाहत कुछ इस कद्र बढी़ है उनसे के
हर फासले हो रहे ना-कामीयाब शाम-ओ-सेहर
मेरे दिल ने फैसला किया आज उस दिवाने से
कोशिश करेंगे याद करें शाम-ओ-सेहर
किस तरह वादा करें हम याद न करने का
जब भुला ही न पाये हम शाम-ओ-सेहर
गली, शहर सब घुमें 'फिजा़' दूर-दूर
एक तुम से न हो पाये दूर शाम-ओ-सेहर
~ फिजा़
ऐसा था कभी अपने थे सभी, हसींन लम्हें खुशियों का जहाँ ! राह में मिलीं कुछ तारिखियाँ, पलकों में नमीं आँखों में धुआँ !! एक आस बंधी हैं, दिल को है यकीन एक रोज़ तो होगी सेहर यहाँ !
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अच्छी यादें दे जाओ ख़ुशी से !
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6 comments:
जब भी आँख बंद की और तस्वीर है तेरी,
कभी चैन से सो ना पाये शाम-ओ-सेहर ...
बहुत खुब, बधाई, फ़िज़ा जी.
समीर लाल
बहस के वो दिन भुला ना पाये हम शाम ओ सहर !
One of my fav poem of urs! Yahan share karne ka shukriya.
उडन तश्तरी: समीर जी, आपका बहुत-बहुत शुक्रिया जो इस नाचीज़ की सराहना की।
खुश रहें सदा...
मनिष: बहुत अच्छा लगा जानकर के हमारी भी कोई नज़्म/कविता आपकी पसंदीदा में शामिल है।
शुक्रिया...
बहस के दिन भुलाऐ न भुलें
ये न आयें फिर जैसे
सावन के झूले
Achcha laga wo theek hai par mera naam to theek likhiye grrrr :)
मneeष !
Baat tumhein samajh hee nahi aaye to mein kya karooon ...lol
Yaad hai Dil Chahta hai mein....aaasheeeesh....:P
I did it on purpose...even though dekhne mein bhi thik nahi lagta phir bhi ....boooh
Maneeeeesh :D
Cheers
actually subha jaldi mein jaane kya type kiya ...oops! its Akaaaaash :D
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