कल चौदहवीं की रात नहीं थी, मगर फिर भी!!!!



कल श्याम कुछ थकी थकी सी थी 
कल पटाखों से भरा आसमान था 
जाने -अनजाने लोगों से मुलाकात 
फिर घंटों बातें और सोच में डूबे रहे 
वक़्त दौड़ रही थी और हम धीमे थे 
चाँद श्याम नज़र तो आया था मुझे 
पर रात तक तारों के बीच खो गया 
मगर मोहब्बत की लौ जला चूका था 
रात निकल रही थी कल के लिए और 
हम अब भी सिगार सुलगाते बातें करते 
वो मेरे पैर सहलाता बाते करते हुए 
बीच-बीच में कहता 'I love you'
midnight का वक़्त निकल गया 
मगर यहाँ किसे है कल की फ़िक्र 
घंटों मोहब्बत और भविष्य की बातें
और फिर तारों को अलविदा कर 
चले एक दूसरे की बाहों में सोने 
लगा तो था अब नींद में खो जायेंगे 
मगर दोनों एक दूसरे में ऐसे खोये  
काम-वासना-मोहब्बत-आलिंगन 
की इन मिश्रित रंगों में खोगये 
समझ नहीं आया रात गयी या 
सेहर ठहर सी गयी !!!

~ फ़िज़ा  

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