सवाल करतीं हैं मुझ से मेरी परछाइयाँ
जवाब दूँ तो क्या सुनेंगी ये परछाइयाँ ?
कुछ कहते हैं बेजान होती हैं परछाइयाँ
मौका मिले वहां पीछा करती परछाइयाँ
कभी डराते पीछे-पीछे चलकर परछाइयाँ
तो कभी हौसला दे आगे आकर परछाइयाँ
समय के साथ-साथ ये बदलती परछाइयाँ
कभी लम्बी तो कभी छोटी बनती परछाइयाँ
फिर भी मुझ से करतीं सवाल ये परछाइयाँ
कहो तो क्या कहूं मैं इनसे जो हैं परछाइयाँ
जानतीं तो हैं ये सब साथ जो हैं परछाइयाँ
सवाल करतीं हैं मुझ से फिर भी परछाइयाँ
अब जवाब दूँ भी तो क्या दूँ ऐ परछाइयाँ ?
~ फ़िज़ा
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