हर उड़ान पर दी थप-थपाई...

दुआओं से मांगकर लाये
ज़मीन पर मुझे इस कदर
प्यार से सींचा निहारकर
भेद-भाव नहीं जीवनभर
हर ख्वाइश की पूरी खुलकर
उड़ने दिया हर पल पंछी बनकर
हलकी सी आंच आये तो फ़िक्र
ग़म को न होने दिया ज़ाहिर
हर उड़ान पर दी थप-थपाई
बढ़ाया हमेशा हौसला रहे कठोर  
उम्र का नहीं होने दिया एहसास
हर पल खैरियत पुछा मुस्कुराकर
ज़िन्दगी माली की तरह बिता दी
पिता ने बच्चों को सींच-सींचकर
बच्चे भी कितने खुदगर्ज निकले  
सोचते हैं काश! होते बच्चे अब तक !

~ फ़िज़ा

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