बस गुज़रे दिन बचपन की यादों में कहीं ...




आजकल दिल लगता ही नहीं कहीं
खुलकर दिल से कहने को भी कुछ नहीं
धक्का मार रहे हैं ज़िन्दगी चलती नहीं
जी रहे हैं क्यूंकि कोई और चारा भी नहीं
बस गुज़रे दिन बचपन की यादों में कहीं
ऐसा देखते-सोचते गुज़र जाए वक़्त कहीं
थक गए ज़िन्दगी की नौकरी करते यहीं
अब बक्श दो दफा करो हमें ज़िन्दगी
शायद कुछ नयापन लगे मौत के सफर में
आजकल दिल लगता ही नहीं कहीं
खुलकर दिल से कहने को भी कुछ नहीं

~ फ़िज़ा

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