Friday, July 07, 2017

क्यों वो साथ फ़िज़ा का नहीं ?


पूछती है मेरे अंदर की सहेली मुझसे 
कब तक औरों की ख़ुशी के लिए जिए 
जब औरों को भी ऐसा नहीं लगता हो 
तो क्यों न अपने मन की ख़ुशी जियें ?
दिल कहता है कहीं दूर निकल जाएं
छोड़-छाड़ नगरी और यहाँ के लोग 
बसर कर अजनबियों के संग ज़िन्दगी 
क्या रोक रहा है जो न खुश है कहीं?
रोटी-पानी को बिलखता देख आँसू 
हर तरफ की मारा-मारी देख उदास 
दिल से यही आवाज़ कुछ मैं भी करूँ
किसका लहू है रोके मरते को देख?
हर तरफ है आशा-निराशा कहीं तो 
एक सहारा तो चाहिए जो है उम्मीद 
देने वाला चाहे कोई भी क्यों न हो 
क्यों वो साथ फ़िज़ा का नहीं ?

~ फ़िज़ा 

No comments:

अच्छी यादें दे जाओ ख़ुशी से !

  गुज़रते वक़्त से सीखा है  गुज़रे हुए पल, और लोग  वो फिर नहीं आते ! मतलबी या खुदगर्ज़ी हो  एक बार समझ आ जाए  उनका साथ फिर नहीं देते ! पास न हों...