पूछती है मेरे अंदर की सहेली मुझसे
कब तक औरों की ख़ुशी के लिए जिए
जब औरों को भी ऐसा नहीं लगता हो
तो क्यों न अपने मन की ख़ुशी जियें ?
दिल कहता है कहीं दूर निकल जाएं
छोड़-छाड़ नगरी और यहाँ के लोग
बसर कर अजनबियों के संग ज़िन्दगी
क्या रोक रहा है जो न खुश है कहीं?
रोटी-पानी को बिलखता देख आँसू
हर तरफ की मारा-मारी देख उदास
दिल से यही आवाज़ कुछ मैं भी करूँ
किसका लहू है रोके मरते को देख?
हर तरफ है आशा-निराशा कहीं तो
एक सहारा तो चाहिए जो है उम्मीद
देने वाला चाहे कोई भी क्यों न हो
क्यों वो साथ फ़िज़ा का नहीं ?
~ फ़िज़ा
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