कुछ लिखते क्यों नहीं ...!


साफ़ सुथरी स्लेट पर 
वो देखते रहा यूँ जैसे 
अभी कोई निकल आएगा 
जो उसे जगाएगा 
और कहेगा -
क्या सोचता है दिन भर 
कुछ लिखते क्यों नहीं 
क्यों डूबे हुए ख्यालों को 
देते नहीं कलम का सहारा 
कुछ नहीं तो कोई पढ़नेवाला 
ही बता दे कोई राय तुम्हें 
क्या सोचता है दिन भर 
लिख ही डालो अब वो सब 
जो डुबाए रखता है तुम्हें 
कुछ हमें भी कोशिश करने दो 
क्या खोया क्या पाया है 
इसका अनुमान गोते खाकर 
डूबते संभलते ही समझा दो 
मगर बेरंग न रखो इस स्लेट को 
कुछ ज़रूर लिखो मन की रात  
जो लगे सबको अपनी बात  
दिखे किसी के अरमान और 
लगे अपनी ही सौगात  
एक पल जो न ख़याल है 
न सवाल है, बस दरिया है 
डूब जाना है !

~ फ़िज़ा 

Comments

Popular posts from this blog

मगर ये ग़ुस्सा?

फिर बचपन सा जीना चाहती हूँ...

प्रकृति का नियम