Saturday, June 03, 2006

मुफक्‍किर बना दिया

जिंदगी के कई रंग और रुप होते हैं और किसी के आने या फिर जाने से भी उन्‍हीं रंग और रुप में भी परिवर्तन आ जाता है। ऐसे ही एक पल में बीता और अनुभवी चित्रण...इसिलाह की मुंतजी़र


जिंदगी तो हसीन ही है जाना था
परस्‍तार ने इसे और रंगीन बना दिया


{परस्‍तार = lover; worshiper}

उसकी परस्‍तिश में ऐसे डूबे हम
किसी परावार ने जैसे परिवाश बना दिया


{परस्‍तिश= worship; adoration}
{परावार= protector}

{परिवाश=angel; fairy; beauty}

घंटों बातों में डूबोकर रखना हमें
हर रंग में ढलते मोज्‍जाऐं जैसे दिलकश बना दिया

{मोज्‍जाऐं = waves}

पलभर की खामोशी जैसे मुज़तारिब कर गई
हमको तो दिवानगी में मुफक्‍किर बना दिया

{मुज़तारिब= restless; disturbed}
{मुफक्‍किर= thinker}

इस कद्र मेहाव हैं तेरी बातों में जाना
के हमें सब से मेहरूम बना दिया

{मेहाव= engrossed}
{मेहरूम= devoid of}


~ फिजा़

4 comments:

Udan Tashtari said...

कठिन शब्द, मगर सुंदर भाव हैं.

समीर लाल

Shuaib said...

ज़बरदस्त है

Braveheart said...

I came here through Parth's recommendation. I like your attempts. But I'd want you to know that your rhyme is mostly forced and compromises on the content. Also, the meter is not appropriate at all. Of course, that perfection will come with time only, but I hope you are trying to improve on those accounts.

Also, some variety in the theme might not be a very bad idea. Try that :)

-- Akshaya

kumarldh said...

ab main kayi dino se soch raha hoon ke kuch keh hi doon, aap ka dhyaan is blog par kam hai. lagta hai jyada masroof hain. badhiya hai. leking hafte me ek aadh koi nazam koi sher hi likh diya karen, apna na sahi kisi aur ka hi sahi.

अच्छी यादें दे जाओ ख़ुशी से !

  गुज़रते वक़्त से सीखा है  गुज़रे हुए पल, और लोग  वो फिर नहीं आते ! मतलबी या खुदगर्ज़ी हो  एक बार समझ आ जाए  उनका साथ फिर नहीं देते ! पास न हों...