Saturday, June 10, 2006

एक उपन्‍यास की जुस्‍तजू़ में

जिंदगी में हर कोई अपने- अपने अरमान लिये हुये आता है और शायद उसे पूरा करने या होने की आरजू़ में ही जिंदगी गुजा़र देता है...मेरी भी कोशिश यहाँ उन आरजूओं की सोच, कल्‍पना और उन सोचों में पडे़ एहसासों को पेश करना है। कहाँ तक सफल हुई हूँ ये मैं आप सभी पर छोड़ती हूँ......
आपकी मुंतजि़र

ख्‍यालों के पन्‍ने उलटती रेहती हूँ
जिंदगी की स्‍याही घिसती रेहती हूँ
नये पन्‍ने जोड़ने की आरजू़ में,
नीत-नये दिन खोजती रेहती हूँ

जीवन के पुस्‍तकालय में,
'मधुशाला' को ढुँढती रेहती हूँ
शब्‍दकोश के इस भँडार से
जीवनरस निचोडती रेहती हूँ

स्‍याही-कलम के बिना भी
लिखे गये हैं ग्रंथ कई
मेरे कलम में आज भी मैं,
रंग भरती रेहती हूँ


अब के खुशियों से भरे
जीवन की हकीकत पर
पन्‍ना-पन्‍ना जोडकर

उपन्‍यास लिखने की

आरजू़ में रेहती हूँ
कौन से दो नयन मैं उधार लाऊँ
जहाँ मेरी इस उपन्‍यास को

सच्‍चाई की एक दुकान मिले

मैं अब भी हिम्‍मत जुटाते रेहती हूँ
मैं अब भी टूटती पंक्‍तियों को जोडती हूँ
मैं अब भी एक किताब लिखने का हौसला रखती हूँ
बोलो, क्‍या इसे कोई खरीदेगा??


जीवन के वो बोल समझ पायेगा??
खून की स्‍याही, से सींचकर रखी इस किताब को
बोलो...क्‍या कोई अनमोल खरीदार मिलेगा??
जो पन्‍नों को मेरी तरह उलट-पलट कर


गुलाब के रंग सा मेरी तन्‍हाई को भर देगा??
चेहलती इस दुनिया में सोचूँ...घबराऊँ.....
नाउम्‍मीद का अकक्षर मिटाते रेहती हूँ
हाँ, आज भी मैं कोशिश करती रेहती हूँ ...!


~फिजा़

5 comments:

Manish Kumar said...

आरजू में रहती हूँ
कौन से दो नयन मैं उधार लाऊँ
जहाँ मेरी इस उपन्‍यास को
सच्‍चाई की एक दुकान मिले
loved these 4 lines ! Well written

മര്‍ത്ത്യന്‍ said...

kharidar to roz janam lenke
jo kitabon ka tol mol karey
Lekin likhe akshar to anmol hey
uska kya :)

kumarldh said...

wah bhai wah
kuch kahawaten yaad a rahi hain
* murda bole to kafan faad ke
* tufan ke phele ki khamoshi
* Sou sunar ki ek lohar ki
Saar yeh ke kitne din chup rahne ke baad aap ne ek achi kavita likh hi di
badhiya hai

Neer said...

thanks dawn for the compliments on my post in kuan's blog...! you do have immense expression here!

rachana said...

achcha likha hai ji....likhati ranhe! shubhkamnaye...

अच्छी यादें दे जाओ ख़ुशी से !

  गुज़रते वक़्त से सीखा है  गुज़रे हुए पल, और लोग  वो फिर नहीं आते ! मतलबी या खुदगर्ज़ी हो  एक बार समझ आ जाए  उनका साथ फिर नहीं देते ! पास न हों...