क्या हम अंदर से ही मरचुके
देखा तो नन्हे-नन्हे पैर
एक दूसरे पर लदे हुए
मासूम सुन्दर और कोमल से
एक तरफ देखा नन्हे पैर
मैदान में दौड़ते व खेलते हुए
खिलखिलाते चिल्लाते हुए
बच्चे जो ख़ुशियाँ बिखेरते हैं
हमारा कल हमारे बाद भी रहेगा
वही कल आज लहूलुहान है
खून से रंगे लथपथ शरीर
बेज़ुबान लहुलुहान बेजान
हमारा कल हमीं से बर्बाद
क्या हम अंदर से ही मरचुके
आँखों से देखकर भी नहीं चुके
जानवर भी बच्चों का संरक्षण करते
इंसानियत का क़त्ल हो चला है
स्वार्थ ने जगड़ लिया है जहां
ज़िन्दगी फिर वो बच्चों की सही
नफरत और द्वेष में हम सब
यूँही ख़त्म हो जायेंगे हम
मुर्ख, अपने ही पैर मारे कुल्हाड़ी
मगर ज़िन्दगी? पीढ़ी दर पीढ़ी
क्या सीख हैं आनेवाले कल को
ख़त्म करो सभी को सत्ते के लिए
जब अपने पोते-पोती पूछेंगे तुमसे
क्या जवाब दोगे उनको क्या कहोगे?
आँख के लिए आँख लोगे अंधे हो जाओगे !!
~ फ़िज़ा

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