जाने क्या हुआ है
आजकल में जाने क्या हुआ है
पन्द्रा -सोलवां सा हाल हुआ है
जाने कैसे चंचल ये मन हुआ है
बरसात की बूंदों सा थिरकता है
कहीं एक गीत गुनगुनाता हुआ है
वहीं दूर से चाँद मुस्कुराता हुआ है
ये सारी साजिशें किसने रचाई है
ऐसा गुमान सा तो नहीं कुछ हुआ है
मगर फिर भी सोचूं ये क्या हुआ है
चलो छोड़ो भी क्या सोचना इतना
खतरे का साया सा कोई मंडराता है !
~ फ़िज़ा
Comments