कुछ रिश्ते, कुछ बातें होने के लिए होतीं हैं
वर्ना यूँही कौन कैसे किसी को समझता?
क्या अच्छा और अच्छा नहीं कैसे समझते?
जब तक हादसे और किस्से न समझाते हमें !
जब आँख खुले तभी सवेरा समझ लेना ठीक
बेकार सोचने में वक़्त ज़ाया करने से क्या ?
जीवन की यही रीत है प्रकृति ने सिखलाई
जो भी आये सामने तू रुख मोड़ बढ़ जा आगे !
~ फ़िज़ा
2 comments:
फिज़ा कहती है .. howz the जोश ?
जवाब आता है...हाय सर !
DHanyawaad
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