ये ज़िन्दगी की भी क्या अजीब किताब है
हर साफा किसी न किसी से जूझता हुआ !
हर साफा किसी न किसी से जूझता हुआ !
कोई इश्क़ में डूबा हुआ तो कोई मारा हुआ
कभी इश्क़ से मांगता हुआ तो लड़ता हुआ !
जीने के लिए लड़ता हुआ तो ललचाता हुआ
जीने के वजह से मरता हुआ तो मारता हुआ !
कोई जीने के लिए बन्दूक लेता तो कोई खाता
बारूद की बरसातें तो तेज़ाब के छींटों से भरा !
दो घडी की दीवानगी बरसों का झमेला हुआ
जो भी किया चंद सुकून परस्ती के लिए हुआ !
जाने ज़िन्दगी को जीता कहें या सेहता हुआ
हर सांस जीने के लिए मरता-जूंझता हुआ !
ज़िन्दगी भी अजीब सी किताब है 'फ़िज़ा '
हर साफा बहादुरी से मरता हुआ लगे !!
~ फ़िज़ा
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