Thursday, November 22, 2018

अलविदा कहना अब इस वक़्त ठीक नहीं


ज़िन्दगी किसी की मोहताज़ नहीं
फिर भी इंसान शुक्रगुज़ार नहीं
जीना गर तुम्हारी फितरत में नहीं
किसी और की ज़िन्दगी बर्बाद भी नहीं
खुदगर्ज़ और खुदफहमी में रहना नहीं
साथ रहनेवालों को बेचैन, ज़िन्दगी नहीं
बहुत हुआ नेकी करनी सोचा अभी नहीं
वो वक्त गुज़रकर जाना यहाँ से दूर नहीं
अलविदा कहना अब इस वक़्त ठीक नहीं
उस दिन की आस ज़रूर है जब हम नहीं !
~ फ़िज़ा

No comments:

ज़िन्दगी जीने के लिए है

कल रात बड़ी गहरी गुफ्तगू रही  ज़िन्दगी क्या है? क्या कुछ करना है  देखा जाए तो खाना, मौज करना है  फिर कहाँ कैसे गुमराह हो गए सब  क्या ऐसे ही जी...