यादों के काफिले घूमते रहे ऐसे...!


कुछ इस तरह दिन गुज़रते हैं 
यादों के काफिले घूमते हैं 
काले बादलों की तरह जैसे 
कब बरसें तो अब बरसें 
बदल यूँही मंडराते रहते हैं 
एक आस और अंदेशा जैसे 
दिलों को दिलासा दिए जाते हैं 
इस तरह, यादों के काफिले घूमते हैं !
पूछती है मुझसे हर कली बाग़ में 
किसे ढूंढ़ते हो क्यारियों में ऐसे 
जाने क्या सोचकर हंस दिए वो 
जब कहा मैंने बादलों के बरसे 
मोतियाँ बटोरने आया हूँ मैं कब से 
कली मुस्कुरायी और बोली मुझसे 
यहाँ फूल बन ने तक रखता है कौन? 
इस तरह , यादों के काफिले फिर घूमते रहे!
सुना है गुलदान में रखते हैं फूलों को सजाके 
चलो फिर गुलदान ही को ढूंढा जाए 
यूँही फिर सफर चलता रहा मगर ऐसे 
के यादों के काफिले घूमते रहे ऐसे !!

~ फ़िज़ा 

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