ज़िन्दगी में बहुत दोस्त मिलते हैं
मगर ऐसे बहुत कम मिलते हैं
जो खुद को बहुत छोटा और
दूसरों को बहुत ऊपर देखते हैं
ऐसा महसूस कराने वाले
ज़िन्दगी में कम मिलते हैं
दोस्ती कैसे निभाते हैं कोई
आपसे सीखे जो मीलों दूर
महीनों बिना बतियाये फिर भी
हाल-चाल की खबर रखते
सफर जब घर की तरफ हो
घर ठहराए बिना नहीं भेजते
हमेशा छोटे बच्चों की तरह
हर ख्वाइश पूरी करते रहते
गर अकेला महसूस भी किया
तो परिवारों के बारे में सोचा उनके
जो काम करते थे दफ्तर में आपके
जीवन से हताश न होना और साहस
औरों को देना ज़िन्दगी की यही
परिभाषा अपनायी आपने
जाने लोग कितनी भी उम्र लगालें
आप उस मासूम बच्चे की तरह
उत्सुक और नयी तरकीबों को
सोचते रहे और फिल्म बनाते रहे
आज भी सभी को इस कदर छोड़ा
के सब ज़िन्दगी की यादों में
बहक गए !
वाह ! नीरज,
यहाँ भी अपने अंदाज़ में चले
चलो कोई नहीं मुलाकात
अभी बाकी है उन सभी बातों के लिए
जिसे पूरी करने की ख्वाइश
हम दोनों ने की.
~ फ़िज़ा
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